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पउमचरिउ (पद्मचरित) (अपभ्रंश, हिन्दी) भाग 5

महाकवि स्वयम्भू

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :354
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 10537
आईएसबीएन :8126306076

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राम का एक नाम पद्म भी था. जैन कृतिकारों को यही नाम सर्वाधिक प्रिय लगा. इसलिए इसी नाम को आधार बनाकर प्राकृत, संस्कृत एवं अपभ्रंश में काव्यग्रन्थों की रचना की गई.

राम का एक नाम पद्म भी था. जैन कृतिकारों को यही नाम सर्वाधिक प्रिय लगा. इसलिए इसी नाम को आधार बनाकर प्राकृत, संस्कृत एवं अपभ्रंश में काव्यग्रन्थों की रचना की गई. स्वयंभू का प्रस्तुत ग्रन्थ 'पउमचरिउ' अपभ्रंश का सबसे पहला प्रबन्ध-काव्य माना गया है. 'पउमचरिउ' मानव मूल्यों की सक्रिय चेतना का एक ऐसा ललित काव्य है जिसमें रामकथा का परम्परागत वर्णन होने पर भी जिसके शैली-शिल्प, चित्रांकन, लालित्य और कथावस्तु में अनेक विशेषताएँ हैं.

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