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कहानी संग्रह >> बाहर कुछ नहीं था

बाहर कुछ नहीं था

संजय खाती

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :115
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 10343
आईएसबीएन :9788126313587

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बूढ़ा जैहिन्दी इस त्रिआयामी संसार में होकर भी नहीं है। वह सिर्फ उन किस्सों में अपनी घड़ी के साथ जिन्दा है,

बूढ़ा जैहिन्दी इस त्रिआयामी संसार में होकर भी नहीं है। वह सिर्फ उन किस्सों में अपनी घड़ी के साथ जिन्दा है, जो लोगों ने अपने बाप-दादाओं से सुनी हैं। इस अंचल में आज भी जैहिन्दी का नाम लेते ही आप उन कथाओं को सुन सकते हैं और बेचारगी से सिर हिलाकर कह सकते हैं-'शिट!'

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