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संस्कृतव्याकरण

रश्मि चतुर्वेदी डॉ.

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :394
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 10272
आईएसबीएन :978-1-61301-625

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संस्कृत व्याकरण

संस्कृत भाषा के अध्ययन में व्याकरण की महत्ता असंदिग्ध है। विश्वविद्यालीय छात्रों को सुगमतया ब्याकरण का ज्ञान कराने के लिए सिद्धान्तकौमुदी तथा लघुसिद्धान्तकौमुदी प्रवेश द्वार हैं। एम॰ए॰ तथा प्रतियोगी के छात्रों की आवश्यकता-पूर्ति हेतु सिद्धान्तकौमुदी का कारक प्रकरण तथा लघुसिद्धान्तकौमुदी के समास, कृदन्त, तद्धित एवं स्त्रीप्रत्यय को प्रस्तुत किया गया है। इसमें प्रत्येक सूत्र का सरलार्थ, व्याख्या और शब्द-सिद्धि को स्पष्ट रूप में रक्खा गया है। सरलार्थ में सूत्र की मौलिकता को ध्यान में रखते हुए सूत्र का सरल अर्थ दिया गया है और व्याख्याभाग में सूत्रों के दुरूह स्थलों की सरल व्याख्या कर प्रयोगो की सिद्धि दिखलायी गयी है। प्रयोगों की सिद्धि में प्रक्रिया सरल और रपष्ट रक्खी गयी है। यथासम्भव सूत्रों को उद्धृत किया गया है. पर बार-बार दिखलायी गयी प्रक्रिया को अगले प्रयोगों में नहीं दिखलाया गया है। प्रारम्भ में सस्कृत-व्याकरण का संक्षिप्त परिचय देकर विषय से सम्बन्धित शास्त्रीय शब्दों का विवेचन प्रस्तुत किया गया है। इस प्रकार इस ग्रन्थ में पाणिनीय ब्याकरण की पद्धति को सुरक्षित रखते हुए उसे नवीन ढंग से प्रस्तुत किया गया है।

यह ग्रन्ध केवल एम.ए. कक्षा के विद्यार्थियो के लिए ही नहीं, अपितु संस्कृत व्याकरण में प्रवेश करने वाले सभी जनों के लिए उपयोगी है। व्याकरण की प्रथम पुस्तक होने के कारण भाषा सरल एव सुबोध प्रयोग की गयी है।

प्रस्तुत पुस्तक में जो कुछ भी है, वह उन्हीं गुरुजनों की कृपा का प्रसाद है जिन्होंने अपने त्याग, तपस्या एव अत्यधिक परिश्रम से पाणिनी की इस उत्तम कृति को जीवित रक्खा है। इसकी व्याख्या में अनेक ग्रन्थों से सहायता ली गयी है। जिनमें लघुसिद्धान्तकौमुदी (श्रीधरानन्द शास्त्री, प्रो॰ महेश सिंह कुशवाहा) सिद्धान्तकौमुदी, काशिकावृत्ति और संस्कृत-व्याकरण प्रवेशिका (डॉ बाबूराम सक्सेना) आदि मुख्य हैं। डॉ॰ शिवबालक द्विवेदी जी, पूर्व प्राचार्य बद्री विशाल कालेज, फर्रुखाबाद को नहीं भुलाया जा सकता, जिनकी अजस्र प्रेरणा से प्रस्तुत पुस्तक लिखी गयी है। इन सभी विद्वानों के हम हृदय से आभारी हैं। प्रस्तुत पुस्तक के सम्पादन में डॉ॰ शोभा निगम, डॉ॰ पुष्पा जोशी, डॉ॰ निष्ठा वेदालंकार आदि का पूर्ण सहयोग रहा है। लेखिका उनकी अत्यधिक आभारी है। इसमें जो दोष या अशुद्धियां रह गयी हैं, वह लेखक का धिषणा-दोष ही कहा जा सकता है। आशा है यह कृति छात्रोपयोगी सिद्ध होगी।

- लेखिका

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