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ऊपरी गंगाघाटी द्वितीय नगरीकरण

संजू मिश्रा

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :164
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 10270
आईएसबीएन :9789352211890

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

ऊपरी गंगा के मैदान में नगरीकरण से सम्बन्धित ज्ञान के मुख्या आधार साहित्यिक साक्ष्यों के साथ-साथ पुरातात्त्विक अन्वेषण एवं उत्खनन है। भारत में नगरों के आविर्भाव कि प्राचीनता ताम्राश्म काल में हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो नामक स्थानों पर बने हुए नगरों के सन्निवेश तथा उनके सामाजिक एवं आर्थिक जीवन के दृष्टान्तों से सिद्ध हो जाती है, किन्तु द्वितीय सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व के मध्य में सैन्धव सभ्यता के विनाश के साथ ही सम्पूर्ण भारत पुनः ग्राम्य संस्कृति में लौट आया तथा एक हजार वर्षों के लम्बे अंतराल के पश्चात छठी शताब्दी ईसा पूर्व में, गंगा के मैदान में षोडश महाजनपदों का उद्भव राजनितिक इकाइयों के रूप में उत्तर भारत में हुआ छठी शताब्दी ईसा पूर्व का काल उत्तर भारत में अनेकानेक नवीन परिवर्तनों का काल था तथा ये परिवर्तन जीवन के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में दिखायी देते हैं। इसे द्वितीय नगरीकरण कि संज्ञा दी गयी है। पुरातात्त्विक भाषा में इसे उत्तरी कृष्ण मार्जित पत्र परंपरा संस्कृति के प्रारंभ का काल माना जा सकता है। इस शोध प्रबंध के माध्यम से ऊपरी गंगा के मैदान के पुरातात्त्विक अनुक्रम का तथा द्वितीय नगरीकरण से सम्बन्धित नगरीय साक्ष्यों का क्रमबद्ध एवं सुव्यवस्थित ऐतिहासिक एवं पुरातात्त्विक अध्ययन प्रस्तुत करने का यथासंभव प्रयास किया गया है।

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