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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आशा की नयी किरणें

आशा की नयी किरणें

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :214
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1019
आईएसबीएन :81-293-0208-x

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प्रस्तुत है आशा की नयी किरणें...

Asha Ki Nayi Kiranen a hindi book by Ramcharan Mahendra - आशा की नयी किरणें - रामचरण महेन्द्र

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

शक्ति का केन्द्र आप में है

आप्रुहि श्रेयांसम् अति समं क्राम। (अथर्व० 2।11।4)

 

आओ, जिनके बराबर तुम खड़े हो, उनसे आगे बढ़ो। आओ, जो तुमसे बढ़े हुए हैं, उनतक पहुँचने का प्रयत्न करो।
भगवान् श्री कृष्ण ने गीता में कहा है, ‘‘अपना उद्धार तुम स्वयं करो।’ अपने आपको हीन मत समझो। मनुष्य स्वयं ही अपना मित्र अथवा शत्रु है। जब मनुष्य अपनी हिंसा स्वयं नहीं करता तभी वह अपनी उन्नति कर सकता है। अतः अपने को हीन समझना निकृष्टतम हिंसा हैं।

सच मानिये, आप अन्नत शक्तियों, सिद्धियों और सफलताओं के भंडार हैं। संसार की उच्चतम योग्यताएँ आपके हिस्से में आयी हैं। परमेश्वर ने सबको समान व उच्च शक्तियाँ प्रदान की हैं। यह बात नहीं कि किसी को कम और किसी को अधिक मिल गयी हों। किसी के साथ रियायत या पक्षपात नहीं किया गया है। परमेश्वर के यहाँ अन्याय नहीं है। समस्त अद्भुत  शक्तियाँ आपके शरीर मन और आत्मा में विद्यमान  हैं। आप केवल आलस्यवश उन्हें जाग्रत् और विकसित करने का कष्ट नहीं करते, कितनी ही शक्तियों से कार्य न लेकर आप उन्हें कुंठित कर डालते हैं, जब कि अन्य कुशाग्रबुद्धि व्यक्तियो को जाग्रत तथा विकसित कर लेना या काम न कर उन्हें पंगु बना लेना स्वयं आपके हाथ में हैं।

स्मरण रखिये, प्रत्येक उत्तम वस्तु पर आपका अधिकार है। यदि आप अपने पुरुषार्थ, उद्योग और सतत अभ्यास से अपने गुप्त सामर्थ्यों को जाग्रत कर लें, तो निश्चय ही अपने क्षेत्र में सफल हो सकते हैं।  यदि दृढ़ प्रयत्न चलता रहे, तो मनुष्य प्रतिज्ञा कर लीजिये कि आप चाहे जो कुछ भी हों, जिस स्थिति या जिस वातावरण में हों, आप एक कार्य अवश्य करेंगे, वह यही कि अपनी शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शक्तियों को ऊँची-से-ऊँची बनायेंगे। कहा भी है-

 

‘‘पौरुषां श्रय, शोकस्य नान्तरं दादुमर्हसि ’’

 

हे मानव ! पुरुषार्थका आश्रम ले। शोक को अवसर मत दे।  

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    अनुक्रम

  1. अपने-आपको हीन समझना एक भयंकर भूल
  2. दुर्बलता एक पाप है
  3. आप और आपका संसार
  4. अपने वास्तविक स्वरूपको समझिये
  5. तुम अकेले हो, पर शक्तिहीन नहीं!
  6. कथनी और करनी?
  7. शक्तिका हास क्यों होता है?
  8. उन्नतिमें बाधक कौन?
  9. अभावोंकी अद्भुत प्रतिक्रिया
  10. इसका क्या कारण है?
  11. अभावोंको चुनौती दीजिये
  12. आपके अभाव और अधूरापन
  13. आपकी संचित शक्तियां
  14. शक्तियोंका दुरुपयोग मत कीजिये
  15. महानताके बीज
  16. पुरुषार्थ कीजिये !
  17. आलस्य न करना ही अमृत पद है
  18. विषम परिस्थितियोंमें भी आगे बढ़िये
  19. प्रतिकूलतासे घबराइये नहीं !
  20. दूसरों का सहारा एक मृगतृष्णा
  21. क्या आत्मबलकी वृद्धि सम्मव है?
  22. मनकी दुर्बलता-कारण और निवारण
  23. गुप्त शक्तियोंको विकसित करनेके साधन
  24. हमें क्या इष्ट है ?
  25. बुद्धिका यथार्थ स्वरूप
  26. चित्तकी शाखा-प्रशाखाएँ
  27. पतञ्जलिके अनुसार चित्तवृत्तियाँ
  28. स्वाध्यायमें सहायक हमारी ग्राहक-शक्ति
  29. आपकी अद्भुत स्मरणशक्ति
  30. लक्ष्मीजी आती हैं
  31. लक्ष्मीजी कहां रहती हैं
  32. इन्द्रकृतं श्रीमहालक्ष्मष्टकं स्तोत्रम्
  33. लक्ष्मीजी कहां नहीं रहतीं
  34. लक्ष्मी के दुरुपयोग में दोष
  35. समृद्धि के पथपर
  36. आर्थिक सफलता के मानसिक संकेत
  37. 'किंतु' और 'परंतु'
  38. हिचकिचाहट
  39. निर्णय-शक्तिकी वृद्धिके उपाय
  40. आपके वशकी बात
  41. जीवन-पराग
  42. मध्य मार्ग ही श्रेष्ठतम
  43. सौन्दर्यकी शक्ति प्राप्त करें
  44. जीवनमें सौन्दर्यको प्रविष्ट कीजिये
  45. सफाई, सुव्यवस्था और सौन्दर्य
  46. आत्मग्लानि और उसे दूर करनेके उपाय
  47. जीवनकी कला
  48. जीवनमें रस लें
  49. बन्धनोंसे मुक्त समझें
  50. आवश्यक-अनावश्यकका भेद करना सीखें
  51. समृद्धि अथवा निर्धनताका मूल केन्द्र-हमारी आदतें!
  52. स्वभाव कैसे बदले?
  53. शक्तियोंको खोलनेका मार्ग
  54. बहम, शंका, संदेह
  55. संशय करनेवालेको सुख प्राप्त नहीं हो सकता
  56. मानव-जीवन कर्मक्षेत्र ही है
  57. सक्रिय जीवन व्यतीत कीजिये
  58. अक्षय यौवनका आनन्द लीजिये
  59. चलते रहो !
  60. व्यस्त रहा कीजिये
  61. छोटी-छोटी बातोंके लिये चिन्तित न रहें
  62. कल्पित भय व्यर्थ हैं
  63. अनिवारणीयसे संतुष्ट रहनेका प्रयत्न कीजिये
  64. मानसिक संतुलन धारण कीजिये
  65. दुर्भावना तथा सद्धावना
  66. मानसिक द्वन्द्वोंसे मुक्त रहिये
  67. प्रतिस्पर्धाकी भावनासे हानि
  68. जीवन की भूलें
  69. अपने-आपका स्वामी बनकर रहिये !
  70. ईश्वरीय शक्तिकी जड़ आपके अंदर है
  71. शक्तियोंका निरन्तर उपयोग कीजिये
  72. ग्रहण-शक्ति बढ़ाते चलिये
  73. शक्ति, सामर्थ्य और सफलता
  74. अमूल्य वचन

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