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मीराँबाई की सम्पूर्ण पदावली

रामकिशोर शर्मा

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2013
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 10178
आईएसबीएन :9788180317569

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

भक्तिकाल में मीरा की ख्याति दूर-दूर तक फैल गयी थी। मीरा के विषय में अनेक किंवदन्तियाँ भी गढ़ ली गयी। किंवदन्तियाँ भले ही ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित न हों किन्तु उनसे इतना अवश्य जाहिर होता है कि मीरा अपनी विद्रोही चेतना के कारण लोकप्रिय अवश्य हो गयी थीं। जो रचनाकार जितना अधिक लोकप्रिय होता है उतना अधिक उसके कृतित्व का देशकाल के अनुसार रूपान्तरण होता है। मीरा के पद गेय थे अतः एक प्रान्त से दूसरे प्रान्त में साधु, सन्तों तथा गायकों के द्वारा मौखिक ढंग से प्रचारित-प्रसारित होते रहे।

मीरा सर्जनात्मक चेतना को भी उद्वेलित करती हैं। मीरा के पदों में पाठ-भेद होने के लिए प्रादेशिक भेद तथा मौखिक गेय परम्परा को जिम्मेदार ठहराया गया है। उनके औचित्य पर प्रश्नचिह्न लगाये बिना एक सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि मीरा ने कुछ पदों को दुबारा कुछ विस्तार से तथा कुछ परिवर्तन के साथ गाया होगा। आत्मोल्लास या उन्माद के क्षणों में गाये जानेवाले गीतों में गायक को इसकी सुध-बुध कहाँ रहती है कि वह अपने पूर्व कथन को दुहरा रहा है। उन्होंने अपने जीवन में घटित हुए कटु एवं तीक्षा अनुभवों को वाणी दी है, राणा के द्वारा जो व्यवहार किया गया था, यदि मीरा भावावेश के क्षणो में उनका कई पदों में स्मरण करती हैं और भगवद् कृपा की महिमा का अनुभव करती हैं।

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