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सफलता के 100 सूत्र

पार्किन्सन, रूस्तमजी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 670
आईएसबीएन :81-7028-482-1

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भविष्य में सफलता प्राप्त करने के मूलमंत्र...

Saflata ke 100 sootra

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

यदि आप अपने कैरियर में, अपने व्यापार में आगे बढ़ना चाहते है तो यह पुस्तक आपके लिए ही है अनेक सफल पुस्तकों के लेखक नाँर्थकोट पार्किसन्न और रूस्तमजी ने इस पुस्तक में दुनिया के प्रसिद्ध मैनेजमेन्ट विशेषज्ञों के विचारों के आधार पर सफलता के 100 सूत्र प्रस्तुत किये हैं जिनसे आप अपने सहयोगियों की प्रतिभा का पूरा फायदा उठा पायंगे उनसे अधिक से अधिक आत्मविश्वास जगाकर अपनी पूरी टीम के मनोबल को बढ़ा पाएंगे। ‘सफल कैसे हों’ यही मूलमंत्र इस पुस्तक का विषय है।

1. सबके प्रति शिष्टाचार

कई बार बिना सोचे-समझे अपरिचित लोगों से तो हम शिष्टता का व्यवहार करते हैं, पर जिन लोगों के साथ हम हर रोज़ काम करते हैं उनके प्रति हमारा बर्ताव कुछ और ही होता है। कई बार हम अपने लिए काम करने वाले लोगों की बातचीत में दखल देते हैं और उनकी बात को बीच में ही टोक देते हैं या उस पर ध्यान नहीं देते हैं प्राय: कभी-कभी तो हम उनके नाम तक भूल जाते हैं। बहुत बार हम अपने लिए काम करने वाले लोगों को उतना ही महत्त्व देते हैं जितना कमरे में पड़ी बेज़ान वस्तुओं को। लोग अपने बॉस से भी शिष्ट व्यवहार की अपेक्षा रखते हैं, और उसकी कमी को बहुत जल्दी महसूस भी करते हैं।

2. आलोचना करे, पर सोच-समझकर

आपको लोगों की आलोचना करने का सही तरीका आना चाहिए। क्या आपको लगता है कि अशोक भविष्य में बेहतर कर्मचारी बन सकेगा ? बिलकुल नहीं। बल्कि ठीक इसका उलटा होगा। अशोक एक इन्सान है और दोबारा गलती करके अपने बॉस को गुस्सा दिला सकता है। आलोचना इसलिए नहीं की जाती कि उन्हें सज़ा मिले या बुऱा लगे। आलोचना ऐसे हो कि लोगों को अपनी गलती समझ में आ जाए जिससे वे अगली बार अच्छा काम करने का प्रयत्न करें। आलोचना के साथ थोड़ी-बहुत प्रशंसा मिलाकर उसके तीखेपन को कम करना अच्छा रहता है।
इससे पहले कि आप कुछ कहें, दूसरे को स्वयं अपनी आलोचना करने का मोका दें। अगर उसे अपनी भूल का अहसास है तो वह इसे आपसे सुनने की बजाय खुद स्वीकार करना पसंद करेगा और जब आप किसी की आलोचना करें तो उस पर अपने पद की उच्चता न जताएं।

3. चिल्लाएं नहीं, समझाएं

किसी पर चिल्लाने की क्या जरूरत है ? उत्तेजना के क्षणों में किसी पर चिल्लाने की बजाय आप उससे आराम से बात भी तो कर सकते हैं। जैसे-यह कहें, ‘मुझे बहुत निराशा हुई। तुमने हमेशा इतना अच्छा काम किया है।’ याद रखें, किसी को डाँटने का उद्देश्य होता है उसे सुधारना, भविष्य में गलती न दोहराने में उसकी सहायता करना। अगर आप अशोक पर चिल्लाएंगे तो वह जान-बूझकर अपनी गलती फिर दोहराएगा-भले ही वह ऐसा केवल बॉस को गुस्सा दिलाने के लिए करे।

4. वादा तो वादा है

‘जैसा मैंने सोचा था वैसा नहीं हो पाया।’ दरअसल बॉस को ऐसा वादा करना ही नहीं चाहिए था। अगर वह वादा करके फिर उससे पीछे हटने की कोशिश करता है तो वह अपने सहकर्मियों का सम्मान खो देता है। बॉस की स्मृति प्राय: बहुत लचीली होती है, वह कह देता है कि उसने यह बात कही ही नहीं। वह लोगों को थोड़े समय तक खुश रखने के लिए ऐसी बातें कह देता है, पर आगे चलकर इसका प्रभाव उल्टा पड़ता है। लोग अपने बॉस से सच्चाई और ईमानदारी की उम्मीद रखते हैं। वे ऐसे बॉस का कभी सम्मान नहीं करेंगे जो अपनी ही बात से मुकर जाए। अगर बॉस पूरी तरह सच्चा और ईमानदार होगा तो लोग उसकी कमियों को भी खुशी से स्वीकार कर लेंगे-और कमियां तो हर बॉस में होती हैं।

5. औरों के साथ वैसा ही व्यवहार करें जिसकी उपेक्षा आप खुद उनसे करते हैं।

ईसाई, हिन्दू, कम्यूनिस्ट, पुराने ढंग के रूढ़िवादी, आपको हमेशा बहुत से लोग मिलेंगे जिनके राजनीति, धर्म, खेल और अन्य विषयों पर अलग और कट्टर विचार होते हैं। पर वे सब बिना किसी परेशानी के शान्तिपूर्वक एक-दूसरे के साथ रहते हैं। मान लीजिए, आप किसी से सहमत नहीं हैं, तो क्या हुआ ? इसके लिए अप्रिय व्यवहार या बहस करने की क्या ज़रूरत है ? सभी को अपने विचारों और मान्यताओं के साथ रहने का अधिकार है। उन्हें अपने विचारों से सहमत कराने की कोशिश में अपना समय और शक्ति खर्च करना बेकार है। आपके अपने विचार हैं और उन्हें उनके अपने विचारों के साथ रहने दें। आप बहस करके लोगों के विचार नहीं बदल सकते। इससे केवल कटुता पैदा होती है। लोगों को अपनी मान्यताओं के साथ रहने दें।

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